हर जीव में शिव के दर्शन करो: अभाविप की राष्ट्र आराधना का मौलिक चिंतन

हर जीव में शिव के दर्शन करो: अभाविप की राष्ट्र आराधना का मौलिक चिंतन

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जब भी कोई सामान्य व्यक्ति छात्र आंदोलनों के बारे में सोचता है, तो साधारणतः धरना और उपद्रव पैदा करने वाले युवाओं की मानसिक छवि ही उभरती है। परंतु अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संबंध में ऐसा नहीं होता। अभाविप को समाज में एक सशक्त छात्र हितैषी आवाज़ के साथ-साथ एक राष्ट्र-समर्पित छात्र संगठन के रूप में देखा जाता है। सोचने का विषय है कि अभाविप को क्या अलग बनाता है? एक सामान्य अभाविप का कार्यकर्ता समाज को (अन्य संगठनो की भांति) निरंतर कोसता नहीं है, बल्कि बेहतर बदलाव लाने के लिए लोगों के बीच काम क्यों करता है? किसी भी राष्ट्रीय आपदा या संकट के समय अभाविप ही अग्रणी क्यों होता है? किस आदर्श ने अभाविप के परोपकारी उत्साह को जीवंत रखा है? वह क्या ओजस्वी विचार है जिसके कारण 1948 में अपने स्थापना काल (हालांकि औपचारिक पंजीकरण 9 जुलाई, 1949 को किया गया था) से ही समाज सेवा के भागिरथी प्रयासों में सहायक होता आया है?

आइए इन सभी प्रश्नों के उत्तर खोजते हैं। अभाविप निशचित रूप से छात्रहितों के लिए संघर्षरत एक छात्र संगठन है जो शैक्षणिक परिवार की परिकल्पना रखता है लेकिन इसकी गतिविधियां निश्चित रूप से परिसरों के भीतर ही सीमित नहीं हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि अभाविप का उद्देश्य राष्ट्र का पुनर्निर्माण करना; भारत के सभ्यतागत उत्थान के लिए, और; भारत माता को पुनः विश्वगुरु बनाने के लिए काम करना है। यही कारण है कि अभाविप व्यक्ति-निर्माण की कार्य-पद्धति के माध्यम से देश के युवाओं में चरित्र, ज्ञान और संगठनात्मक कुशलता विकसित करने को प्रयासरत है। अंतर्निहित वैचारिक आधार यह है कि यदि ऐसे लाखों सामाजिक युवा नेता जीवन भर समर्पण के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, तो भारत एक सबल, समृद्ध, आधुनिक (पश्चिमीकृत नहीं) और आत्म-निर्भार राष्ट्र में बदल जाएगा, एवं वैश्विक स्तर पर अपना सही स्थान लेगा। क्योंकि आत्मनिर्भर और कर्तव्य-निष्ठ छात्र-शक्ति ही सही अर्थों में राष्ट्र-शक्ति हो सकती है। इसी लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अभाविप राष्ट्रीय पुनरुत्थान की दिशा में प्रयासरत सामाजिक संगठन के रूप में रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाती है।

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हमारे सम्माननीय संस्थापक कार्यकर्ता, स्वर्गीय श्री यशवंत राव केलकर जी के जीवन-चरित (‘पूर्णांक की ओर’) को शिरोधार्य कर हम यह मानते हैं कि ‘कुछ लोग प्रश्न उठाते हैं, कुछ लोग प्रश्न होते हैं, जबकि कुछ उत्तर बन जाते हैं। हम उत्तर बनें।’ अभाविप की कार्यकर्ता शक्ति हर राष्ट्रीय (एवं वैश्विक) समस्या का उत्तरदायित्व अपने कंधों पर ले हर संकट का समाधान प्रदाता बनने का प्रयास करता हैं। यही कारण है कियह एकमात्र अखिल भारतीय छात्र संगठन है जिसे किसी भी राष्ट्रीय संकट अथवा प्राकृतिक आपदा के दौरान सबसे आगे देखा जाता है, चाहे वह असम बाढ़ (वर्तमान में) हो या हाल ही में फैली कोरोना ​​​​महामारी का समय हो। उल्लेखनीय है कि अभाविप दिल्ली ने दिल्ली प्रांत को कोरोना मुक्त बनाने के उद्देश्य से 16 मई, 2021 को ‘मिशन आरोग्य: सर्वे संतु निरामयः’ का श्रीगणेश किया। यह दस दिन तक चला। इस पहल के तहत, कार्यकर्ताओं की 28 टीमें थर्मल स्क्रीनिंग के लिए झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले 10,627 लोगों तक पहुंची।और जो लोग CoViD पॉजिटिव पाए गए, उन्हें मेडिकल किट प्रदान की गई व सभी को बचाव हेतु जागरुक किया गया। कोरोना से पीड़ित मानव जाति की सेवा करने के एकमात्र हेतु से पूरे देश में इसी तरह की मुहीम ली गई। कुछ कोरोना-योद्धा कार्यकर्ताओं के हृदय विदारक अनुभवों को सुरुचि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘सम-वेदना: कोरोना काल में स्वानुभूति’ नामक पुस्तक में संस्मृत भी किया गया है।

हमारी व्यापक सामाजिक दृष्टि स्वामी विवेकानंद के सपनों के भारत के निर्माण हेतु युवाशक्ति को संस्कारित करना है। अतः अभाविप कई सामाजिक गतिविधियों को मंच बना यह कार्य करता आया है। ऐसी ही एक गतिविधि है ‘स्टूडेंट्स फॉर सेवा’ (एसएफएस)। इसी बैनर तले ‘ऋतुमति अभियान’ चलाया जा रहा हैजो महिला मासिक धर्म के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर केंद्रित है। मात्र दिल्ली में, जागरूकता अभियान के साथ, 14 झुग्गी क्षेत्रों में 3500 से अधिक सैनिटरी नैपकिन वितरित किए गए हैं। इसके साथ पूरे भारत में आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि के सहस्रो बच्चों को नियमित रूप से ‘परिषद की पाठशाला’ पहल के तहत ट्यूशन दिया जाता है। समाजिक कर्तव्यों के प्रति सजग किया जाता है। एक अन्य अभियान, ‘टीकाकरण से पहले रक्तदान’ का उद्देश्य CoViD संकटकाल के समय पूरी दिल्ली के ब्लड बैंकों में रक्त की कमी को पूरा करना था। इससे एक कदम और आगे बढ़ाते हुए एस.एफ.एस. 1 करोड़ रक्तदाताओं की राष्ट्रीय सूची बनाकर पूरे भारत में एबीवीपी के 75 साल पूरे होने का उत्सव मनाएगा।

ऐसी ही एक अन्य गतिविधि ‘विकासार्थ विद्यार्थी’ (एसएफडी) है जो विकास के समग्र एवं संतुलित दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए काम करता आया है। एसएफडी 1990 से अपने वृक्षारोपण अभियान, पक्षियों और जानवरों के लिए दाना-पानी हेतु अभियान, पर्यावरण केंद्रित मुद्दों पर सेमिनार और संबंधित कार्यक्रमों के माध्यम से छात्रों को संस्कारित करने का काम करता है। छात्रशक्ति के व्यवहार में परिवर्तन लाने को प्रयासरत है। उदाहरण के लिए, अभाविप के 75वें स्थापना दिवस के सुअवसर पर, एसएफडी ने ‘वृक्षमित्र अभियान’ के तहत पूरे भारत में 10 लाख लोगों (प्रत्येक व्यक्ति 10 पेड़ों की रक्षा की जिम्मेदारी लेंगे) द्वारा 1 करोड़ पौधारोपण का लक्ष्य लिया है। इसी तरह विद्यार्थी परिषद् की एक पहल ‘सामाजिक अनुभूति’ युवा पीढ़ी को सूदूर, दुर्गम, ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ सप्ताह के लिए प्रवास की व्यवस्था करती है। जिससे छात्रों में समाज के प्रति संवेदना जागृत हो।

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अभाविप का दृढ़ विश्वास है कि छात्र कल का नागरिक नहीं बल्कि आज का नागरिक होता है। इसलिएनिर्भया कांड के बाद अभाविप उनके परिवार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर तब तक खड़ी रही जब तक उसे न्याय नहीं मिला। लेकिन महिला सुरक्षा के मुद्दे पर रचनात्मक रुख अपनाते हुए ‘मिशन साहसी’ की शुरुआत की गई। पूरे भारत में 2 लाख से अधिक महिलाओं और दिल्ली में 6000 महिलाओं को बुनियादी मार्शल आर्ट प्रशिक्षण दिया गया जिसमें उन्हें दिन-प्रतिदिन की वस्तुओं के साथ आत्मरक्षा में कुशल बनाया गया। ये और ऐसे कई अनगिनत सामाजिक अभियान अभाविप द्वारा अपनी स्थापना काल से लिए गए हैं।परंतु व्यवहारिक कारणों से उन सभी का उल्लेख यहां संभव नहीं होगा। जिज्ञासु पाठक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के ऐतिहासिक-यात्रा पर प्रकाशित दो-खंडों के व्यापक ग्रंथ को पढ़ कर सकते हैं, जिसका शीर्षक ‘ध्येय यात्रा’ है।

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स्वामी विवेकानंद ने इस महान सभ्यता के उत्तराधिकारियों को आह्वान किया था: “उठो, साहसी बनो, बलवान बनो। सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले लो, और जान लो कि तुम अपने भाग्य के निर्माता स्वयं हो।” यह एक विजेता का दृष्टिकोण है। सेवा का यह भाव हमें पीड़ित-चेतना और ‘दूसरों’ (किसी भी व्यक्ति / समाज और/या सरकार) पर सब दोष मढ़ने के आत्मघाती दृष्टिकोण के प्रति प्रतिरक्षित बनाता है। गिद्धों की ‘मृतकों के भक्षण’ की प्रवृत्ति, या नीच राजनैतिक लाभ हेतु आपदाओं का उपयोग करने और ‘दूसरों पर उंगली उठाने’ की प्रवृत्ति पर विदेशी साम्राज्यवादी मूल वाले संगठनों का एकाधिकार है। हम साहसी मार्ग लेते हैं, आर्य मार्ग, जिसमें जनकल्याण के लिए आत्म-बलिदान सर्वोच्च आदर्श है। हम अपने शाश्वत प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलते हैं। हम श्री रामकृष्ण परमहंस उन के महान शिष्य के शिष्य हैं, जिन्होंने मानव जाति को प्रत्येक जीव (केवल मनुष्य नहीं) में शिव देखने व देव-रूप में सेवा करने का मार्ग प्रशस्त किया। यही शाश्वत सत्य हमें प्रेरणा देता है! यह गूढ़ शिक्षा हमारे संगठन (और उसके सभी कार्यकर्ताओं) को उसकी परिपक्व कार्य-शैली, एक साधना-पथ प्रदान करती है। जो मार्ग अपने आप में एक अंत है! अपनी स्थापना के 75वें वर्ष में प्रवेश करते हुए, विद्यार्थी परिषद् का मेरे जैसाएक छोटा सा कार्यकर्ता गर्वान्वित होता है कि विश्व का सबसे बड़ा मेरा छात्र संगठन अपने आदर्श को जी रहा है, और हम निश्चित रूप से यह ध्येय-यात्रा जारी रखने को संकल्पबद्ध हैं। अभियान निरंतर जारी है

 

(This article was contributed by Sh. Arjun Anand, Research Scholar, JNU on 74th foundation day of ABVP and National Students Day - 9th July 2023)